Do not be disoriented for food प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से भोजन के लिए न हो भटकाव

Do not be disoriented for food

Do not be disoriented for food प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से भोजन के लिए न हो भटकाव

आप आएं तो कभी गांव की चौपालों में
मैं रहूं या न रहूं, भूख मेजबां होगी

Do not be disoriented for food अदम गोंडवी की ये पंक्तियां बताती हैं कि देश में भूख मरी की स्थिति हमेशा चिंताजनक रही है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि यह सुनिश्चित करना हमारी संस्कृति है कि कोई भी खाली पेट न सोए. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत खाद्यान्न अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे.

देश सभी सरकारों ने गरीब हितैषी बनने की कोशिश की है. इंदिरा गांधी ने तो गरीबी मिटाओ का नारा दिया था. लेकिन सरकारों की शुरू से नीतियां देखें तो गरीबी के खिलाफ कोई कमाल करने वाली नहीं रही हैं.

आज भी देश में कई लोग भूखे सोने पर मजबूर हैं, कुपोषण की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. सरकार के ही आंकड़े के मुताबिक हर साल सैकड़ों बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो जाती है.

दुष्यंत कुमार ने भूख और गरीबी को लेकर एक व्यंग्यात्मक शैली में व्यवस्था पर प्रहार किया था…

भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ ।

Do not be disoriented for food आजादी के बाद से ही हम गरीबी बेबसी से लड़ रहे हैं… लेकिन 75 साल बीत जाने के बाद भी नतीजा मिलना बाकी है..। एक तरफ चमक-दमक से भरा इंडिया है, तो दूसरी तरफ व्यवस्था और अपनी सामाजिक दायित्व के बीच पिसता मध्यम वर्ग है. तो दूसरी तरफ एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो महज रोटी के लिए ही संघर्ष करता है, वो अपनी पेट भर ले यही उसके लिए बड़ी बात हो जाती है. हमारे यहां कहावत है दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी ने कहा था कि दाने दाने पर खाने वाले के नाम के साथ उसका पता भी लिखा होना चाहिए जिससे वह दाना उस आदमी तक पहुंच जाए. सेठ के गोदाम में न पड़ा रहे.

भोजन को लेकर हमारे यहां एक दर्शन रहा है जिसे कबीर के इन पंक्तियों से समझा जा सकता है.

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

यानि इतना ही मिल जाए जिससे एक परिवार और उसके अतिथि को भोजन मिल जाए इससे ज्यादा की चिंता नहीं है. छत्तीसगढ़ में भूख के खिलाफ संघर्ष का एक अनोखा उपाय रहा है राम कोठी, यहां के गांवों में सामूहिक रूप से अनाज इकठ्ठा करने की परंपरा रही है, इस अनाज का जरूरत पडऩे पर ग्रामीण उसका लाभ उठा लेता है.

Do not be disoriented for food आज की महंगाई के दौर में भी सरकार के मुताबिक गांव में अगर कोई नागरिक हर महीने 816 रुपये खर्च कर रहा है और शहर में 1000 रुपये खर्च कर रहा है तो वह गरीब नहीं माना जाएगा. इससे कम खर्च करने वाले को ही गरीबी रेखा से नीचे माना जाएगा ये पूनर्विचार का विषय हो सकता है. साथ ही जनता को भी सक्षम बनाना होगा नहीं तो निदा फाजली की ये पंक्तियां ही मौजू हैं.

सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक, भूखा रहे फ़क़ीर.

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