राजकुमार मल
Dhenki rice प्रोटीन, फाइबर और फैट की है आनुपातिक मात्रा
Dhenki rice भाटापारा- ढेंकी राईस। नई पीढ़ी तक नए कलेवर में पहुंचाने का प्रयास है। यह इसलिए क्योंकि नए दौर में एक बार फिर से खानपान की पुरानी शैली ना केवल लौट रही है बल्कि लोकप्रिय भी हो रही है। इस बार बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्र से यह उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुंचने लगा है।
Dhenki rice ढेंकी। पूरी तरह लकड़ी से बना एक ऐसा पुराना साधन, जो धान से चावल बनाने का काम करता था। साठ के दशक में ग्रामीण इलाको के घरों में यह बेहद अहम स्थान रखती थी। मशीनों का दौर आया। ढेंकी की जगह हॉलर मिलों ने ली। अब राईस मिलें यह काम कर रहीं हैं लेकिन खानपान की पुरानी शैली जिस गति से लौट रही है और महत्व सामने आ रहा है, उसके बाद ढेंकी में कूटा जाने वाला चावल फिर से घरों में पहुंच बनाने की कोशिश में है।
Dhenki rice बने रहते हैं पौष्टिक तत्व
तकनीक के दौर में जैसा चावल सेवन किया जा रहा है उसमें पौष्टिक तत्व खत्म हो रहे हैं क्योंकि मशीन के कई दौर के चलने के बाद चावल की ऊपरी परत निकल जाती है। इसी परत में पौष्टिक तत्व होते हैं। जिनकी जरूरत, स्वस्थ शरीर के लिए अहम मानी जाती है। ढेंकी राईस इन जरूरी तत्वों से परिपूर्ण होता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और फैट की आनुपातिक मात्रा होती है।
Dhenki rice हर चरण प्राकृतिक
ढेंकी राईस बनाने के दौरान हर चरण पूरी तरह प्राकृतिक बना रहे इसका पूरा ध्यान रखा गया है। उत्पादन के लिए जो तकनीक मददगार बनी है, उसका हर हिस्सा लगभग लकड़ियों से बनाया गया है। जो लकड़ियां उपयोग की गईं हैं, उनमें साल, सागौन जैसी प्रजातियां मुख्य हैं। धान से चावल बनाने के लिए प्राचीन तौर-तरीके ही उपयोग किए जाते हैं।
Dhenki rice 150 रुपए किलो
बस्तर फूड द्वारा बनाया गया ढेंकी राईस आकर्षक एक किलो के पैक में उपभोक्ताओं तक पहुंच रहा है। बताते चलें कि ढेंकी राईस के लिए धान की जिन प्रजातियों का उपयोग किया जाता है, उनमें अधिकतर ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी खेती स्थानीय स्तर पर ही की जाती है। याने हर स्तर पर परंपरा और विशेषता का ध्यान रखा गया है।
Dhenki rice पौष्टिक तत्वों से भरपूर
ढेंकी राईस बनाने के हर चरण में पुरानी तकनीक और परंपरा का ध्यान रखा गया है ताकि चावल का पौष्टिक तत्व बना रहें।
– रजिया शेख, एम.डी., बस्तर फूड्स, जगदलपुर
पौष्टिकता बरकरार
मूसल व ढेंकी में कूटने पर धान का छिलका तो निकलता है लेकिन चावल की ऊपरी परत में मिलने वाले पौष्टिक तत्व बने रहते हैं। जिससे कई तरह की बीमारियों को रोकने में मदद मिलती है। इसे ही ग्रामीणों के सेहतमंद होने का असली राज माना जाता है जबकि बिजली चलित मिलों में होने वाली कुटाई में चावल का पॉलिश हो जाता है जिससे बाजार में उपलब्ध चावल में यह पौष्टिक तत्व नहीं मिलते।
– डॉ अजीत विलियम, साइंटिस्ट, फॉरेस्ट्री, टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर