Congress Politics हिंदी की गोबरपट्टी में मल्लिकार्जुन खडग़े ही नहीं दक्षिण भी बेमतलब!

Congress Politics

Congress Politics हरिशंकर व्यास

 

Congress Politics मल्लिकार्जुन खडग़े नाम का कांग्रेस चेहरा भाजपा के लिए सुकून वाला है। इसलिए क्योंकि उत्तर भारत और उसकी कथित गंगा-जमुनी संस्कृति के हिंदीभाषी लोगों में दक्षिण के चेहरे का होना व न होना बराबर है। उनके अध्यक्ष चुने जाने से पहले ही गोदी मीडिया उन्हें गांधी परिवार की कठपुतली बताने लगा है। खडग़े की जगह यदि दिग्विजय सिंह, अशोक गहलोत अध्यक्ष बन रहे होते तो हिंदी भाषी इलाकों में कुछ चखचख होती।

Congress Politics मतलब विंध्य के इस पार के गुजरात-मध्य प्रदेश-छतीसगढ़ से ऊपर के उत्तर भारत तक राजनीति, जातीय हिसाब-किताब की गपशप में दिग्विजयसिंह या अशोक गहलोत के चेहरे पर कौतुक जरूर बनता। उत्तर भारत की चौपालों पर तब बहसबाजी, तू-तू, मैं-मैं होती। लेकिन दक्षिण भारतीय नेता को ले कर उत्तर में न कौतुक बनना है और न उम्मीद। यह रियलिटी इस बात का प्रमाण है कि दिल्ली और उसके ईर्द-गिर्द की गोबरपट्टी के हिंदुओं को इतिहास से कैसा श्राप मिला हुआ है।

Congress Politics क्या मतलब? पहले जानें कि मसला भूगोल, धर्म और समाज व्यवस्था की भिन्नताओं, विविधताओं का ही नहीं है, बल्कि सोच-समझ, दिमाग, मनोदशा और मनोविज्ञान का भी है। इसकी बदौलत भारत के उत्तर और दक्षिण के चेतन और अचेतन दोनों में भारी फर्क है। विंध्य के इस पार के उत्तर बनाम उस पार के दक्षिण का मनोविज्ञान फर्क लिए हुए है। उत्तर में बुद्धम शरणम् गच्छामि के वक्त से अलग मिजाज, अलग बुद्धि और उस अनुसार अलग उसका इतिहास बना है।

Congress Politics समझ सकते हैं कि इस विषय, इसकी दास्तां और इतिहास विशाल तथा गंभीर है। मोटा मोटी मेरा मानना है कि उत्तर की पांच नदियों और गंगा-जमुना-सरस्वती के किनारे सनातनी ऋषि-मुनियों-विचारकों-तपस्वियों ने स्मृति-श्रुति-लेखन से भाषा-सभ्यता-संस्कृति में जो कुछ सनातन बनाया वह बाद में इन्हीं नदियों की घाटियों, इनके किनारे बसे पंडितों, कर्मकांडियों, मध्यकालीन साधु संतों और बाबाओं-महात्माओं-महामंडलेश्वरों-कथावाचकों की करनियों के प्रदूषणों, अंधविश्वासों और भ्रष्टताओं से बरबाद हुआ। नतीजतन उत्तर भारत गुलाम और गोबरपट्टी होता गया। वह विधर्मियों-मुगलों के हमलों का चरागाह हुआ। विदेशियों की लूट का एपिसेंटर बना।

Congress Politics जनजीवन भक्ति-भाग्य-गुलामी में ढला। सनातनी पुरुषार्थ, बौद्धिकता, ज्ञान-विज्ञान, वेद-वेदांग-उपनिषद्-दर्शन-विचार और सनातनी शास्त्रार्थ की परंपरा ही विस्मृत हो गई। इनकी जगह लीलाएं, रामलीला-कृष्ण लीला, रासलीला, झांकियों, यात्रा के साथ तुलसीदासजी की चौपाईयों, सत्यनारायण की कथा व उन्नीसवीं सदी के एक धर्म नेता श्रद्धानंद फुल्लौरी का लिखा ‘जय जगदीश हरे’ की आरती पूरे धर्म का गीत बनी।

Congress Politics जाहिर है शास्त्र की जगह आरती, बुद्धि की जगह भक्ति, कर्म की जगह समर्पण, अपने पर विश्वास के बजाय भाग्यवाद और पूरा जीवन दुख, लाचारगी, इच्छा, भूख-भय के कारण ईश्वर की अवतार कथाओं से इंतजारी में बंधा या माई-बाप सरकार पर आश्रित।

कुल मिलाकर जिन नदियों की घाटियों, किनारों और कछार में सनातनी सभ्यता-संस्कृति, हड़प्पा-मोहनजोदड़ो का वैभव बना था उस सबका ऐसा बेड़ागर्क जो उत्तर भारत गुलामी के जंजाल में धसता हुआ और जनजीवन सौ टका शास्त्र व शास्त्रार्थ विमुख। बुद्धि पर ताले और दिमाग सिर्फ और सिर्फ भक्ति-दर्शन व भजन करते हुए।

Congress Politics ऐसा दक्षिण में नहीं हुआ। यदि होता तो धुर दक्षिण के शृंगेरी से आदि शंकराचार्य उत्तर भारत आ कर सनातन धर्म की चिंता में क्या कर्मकांडियों से बहस करते? वे क्यों भारत की सांस्कृतिक एकजुटता के लिए चारों दिशाओं में मठ बनाते?

मैं भटक गया हूं। कहां से कहां चला गया! लेकिन भारत और हिंदुओं के इतिहास, वर्तमान व भविष्य का यह दो टूक सत्य है जो उत्तर भारत के हम सनातनी लगातार अल्पबुद्धि के साबित हैं। इस खासियत की वजह अलग है कि बावजूद इसके सनातन धर्म मिटा नहीं।

मतलब विदेशी हमलों और सैकड़ों साल के इस्लामी राज के बावजूद आदि मूल सनातन धर्म बचा रहा। लेकिन मेरा मानना है कि जिसके कारण बचे हैं और मीर कासिम, गोरी के हमलों के बाद भी उत्तर में मथुरा, काशी, अयोध्या, सोमनाथ, संस्कृत, गुरूकुल की अंतरधारा जिंदा रही तो एक वजह दक्षिण से उत्तर की और चेतना का प्रवाह था।

तभी यह सोचना गलत नहीं है कि सभ्यता-संस्कृति का मूल और सत्व-तत्व तथा धरोहर का जिंदा रहना दक्षिण की वजह से है। गोबरपट्टी के दोआब में सब लगातार मिटता-विलीन होता गया जबकि दक्षिण की ठोस-पठारी जमीन ने हिंदू धर्म का अस्त्तित्व मिटने नहीं दिया।

मेरी इस थीसिस के साक्ष्य विंध्य पार सब तरफ मिलेंगे। वहां आज भी कला-संगीत-सभ्यता-संस्कृति और हिंदू राजाओं व राज व्यवस्था के बेजोड़ खंडहर हैं। उत्तर भारत के हर हिंदू को हंपी, तंजावुर, मदुरै, तिरूपति सहित दक्षिण के सभी मंदिरों और महर्षि अरविंद आश्रम से लेकर शृंगेरी में शंकराचार्य मठ के साथ वहां के आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को जा कर देखना-समझना चाहिए।

तब अपने आप तुलना बनेगी कि क्या है दक्षिण भारत और कैसी है गंगा-जमुना की गोबरपट्टी? पेरियार-अन्नादुरई के तमिलनाडु में सामाजिक न्याय बनाम गोबरपट्टी के नीतीश-लालू यादव के सामाजिक न्याय में दिन-रात का फर्क दिखेगा।

केरल में स्वास्थ्य-चिकित्सा और शिक्षा की रियलिटी बनाम इन्हीं दो बातों पर दिल्ली में केजरीवाल या गुजरात मॉडल के ढोंग की असलियत समझ आएगी। ऐसे ही डिजिटल इंडिया या क्रांतिकारी गुजरात मॉडल से लेकर दिल्ली में मोदी सरकार की कार्य संस्कृति, डबल इंजिन जैसे जुमलों की हकीकत को यदि आंध्र व तेलंगाना की कार्यसंस्कृति से तुलना करें तो दिन रात का फर्क मिलेगा।

हां, आंध्र में चंद्रबाबू नायडू ने दशक पहले कैबिनेट की बैठक को डिजिटल टैबलेट पर पहुंचा दिया था। यह भी सत्य है कि दक्षिण में गांव स्तर की आगंनवाड़ी कर्मचारी भी टैब पर काम करती है तो मंत्रियों-अफसरों-बाबुओं की फाइलें, फैसलों की रफ्तार और उसका प्रभावीपन इतना जबरदस्त है कि भारत सरकार के सचिवों, उसके कैबिनेट सचिव के बस में भी वैसे काम करना संभव नहीं है। खासकर उत्तर भारत में नौकरी किए हुए अफसरों के।

मोदी सरकार के पीएमओ में झूठ की फसल की पैदाइश की काबलियत के एक अपवाद को छोड़ कर उनके यहां तथा उत्तर भारत के भाजपा मुख्यमंत्रियों-मंत्रियों या नीतीश-गहलोत के सीएमओ और कैबिनेट में दस प्रतिशत भी वह दक्षता नहीं है जो जगन रेड्डी या के चंद्रशेखर राव के मुख्यमंत्री दफ्तर से लेकर वहां पंचायत तक मिलेगी।

उत्तर भारत के सरकारी दफ्तर बिना एचआर के हैं। सब नौकरी करने वाले, दो नंबर की कमाई और रूतबे के चेहरे हैं। ये अफसर-कर्मचारी सौ टका नौकरीनिष्ठा व सत्ता गुलामी में जीते हैं, जबकि दक्षिण के राज्यों के सरकारी दफ्तर में एचआर, ट्रेनिंग, काबलियत, जवाबदेही के संस्कार भी मिलेंगे। आप पूछेंगे इसके प्रमाण क्या है? तो जवाब है कि तभी उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत के विकास का फर्क चौड़ा होते हुए है।

यदि भारत की इकॉनोमी बड़ी हो रही है तो ऐसा होना दक्षिण भारत के राज्यों के कारण है। उत्तर भारत के लडक़े-लड़कियों को यदि रोजगार मिल रहा है तो वह बहुसंख्या में दक्षिण भारत से है। ऐसे ही केंद्र सरकार का जीएसटी कलेक्शन दक्षिण के बूते है। यह सत्य-तथ्य है कि लगभग पूरा दक्षिण भारत अब फील कर रहा है कि वे उत्तर भारत की गरीब आबादी और वहां की निकम्मी सरकारों के कारण बोझ में हैं।

दक्षिण के राज्य कमाई-मेहनत करते हैं, उनके राज्यों से केंद्र की मोटी रेवेन्यू है मगर मोदी सरकार उस अनुपात में उन्हे टैक्स इनकम नहीं लौटाती। अधिक आबादी के हवाले उत्तर भारत को ज्यादा पैसा बंटता है। इस पहलू पर तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने बाकायदा दक्षिण भारत में गंभीर बहस बनवा दी है।
निश्चित ही दक्षिण भारत भी भारत के कुएं का हिस्सा है और पूरे कुंए में क्योंकि भ्रष्टाचार, बेईमानी, झूठ, पोपुलिस्ट नुस्खों की भांग घुलीमिली है तो यह सब दक्षिण भारत की राजनीति व सत्ता में भी है। बावजूद इसके वहां काबलियत, बड़ी सोच, विरासत, आबोहवा व भाषा (संस्कृत हो या लोकभाषा), शास्त्र-शास्त्रार्थ व घर-परिवारों में बुद्धि आग्रह आदि कारणों से जहां लोक व्यवहार, सत्ता-प्रशासन का व्यवहार उत्तर भारत से अलग है तो धर्म आचरण में भी फर्क है।

संस्कार-चरित्र में भी फर्क है। उत्तर भारत की तरह वहां बाबाओं, कथावाचकों और अंधविश्वासियों के झमेले कम हैं। वहां समाज, घर-परिवार के रिश्तों में वह टूट, वह बिखराव, वह लूट, वह भूख नहीं है जो उत्तर भारत के हिंदी अखबारों के क्राइम पेजों से रोज बेइंतहां जाहिर होती है।

आजाद भारत के 75 वर्षों का एक और सत्य जानें। पचहत्तर वर्षों में दक्षिण के नेता हमेशा, वक्त से पहले वक्त को समझने वाले हुए। कांग्रेस में भी गांधी, नेहरू, पटेल से ज्यादा मैं सच्चा-विचारवान नेता सी राजगोपालाचारी को मानता हूं। इस महामना ने अकेले विभाजन के साथ आबादी ट्रांसफर और लिबरल-पूंजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए कहा था।

Congress Politics नेहरू को खूब समझाया। नेहरू ने समाजवाद-मिश्रित आर्थिकी के मॉडल को अपनाया तो राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी बनवाई। ऐसे ही पेरियार-अन्नादुरई ने सामाजिक न्याय और नास्तिकता का तब हल्ला बनाया जब उत्तर भारत सोया हुआ था। दक्षिण से ही 75 वर्षों में भारत को पीवी नरसिंह राव नाम का अकेला वह प्रधानमंत्री मिला, जिसने अपनी दूरदृष्टि में नेहरू-इंदिरा के आर्थिकी मॉडल को गंगा में बहाकर भारत का नया रास्ता बनवाया।

Congress Politics वह भी हर मायने और हर दिशा में। कांग्रेस के ही कामराज से लेकर निजलिंगिप्पा और गैर-कांग्रेसी में नंबूदरीपाद, रामकृष्ण हेगड़े, वाईबी चव्हाण, वीपी नाइक जैसे नेताओं का करियर कम्युनिस्ट प्रयोग से लेकर सहकारिता आंदोलन से फिर आईटी और औद्योगिकीकरण की छलांगें बनवाने वाला था।

मतलब गुजरात से लेकर बिहार जम्मू कश्मीर से लेकर मध्य प्रदेश के विंध्य तक के हिंदी-गुजराती भाषी नेताओं ने गोबरपट्टी की संख्या ताकत, हिंदी की भाषणबाजी, जुमलेबाजी, जादुई झांकियों से भले देश का राज खूब भोगा मगर 75 वर्षों का सफर इस बात का प्रमाण है कि देश के विकास का इंजिन और उसके इंजिन चालक तो बेहतर दक्षिण में ही हुए है।

Congress Politics इसलिए हिंदीभाषियों से अपना अनुरोध है कि वे दक्षिण के नेताओं को गंभीरता से लें। वे ज्यादा समर्थ हैं। वे विकास को डिलीवर करते हैं। भले उन्हें झूठ और लफ्फाजी नहीं आती हो लेकिन वहां के स्टालिन भी तमिलनाडु को दौड़ाते हुए हैं तो के चंद्रशेखर राव तेलंगाना को बदलते हुए हैं।

Congress Politics इसलिए मल्लिकार्जुन खडग़े भी कांग्रेस को जोरदार कमान दे सकते हैं वैसे ही जैसे एक वक्त कामराज ने कांग्रेस चलाई थी। हिंदी का एक शब्द नहीं जानने के बावजूद कामराज का कांग्रेस नेतृत्व लाजवाब था।

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