Congress needs continuity कांग्रेस को निरंतरता की जरूरत

Congress needs continuity

अजीत द्विवेदी

Congress needs continuity कांग्रेस को निरंतरता की जरूरत

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Congress needs continuity कांग्रेस को निरंतरता की जरूरत

Congress needs continuity कांग्रेस पार्टी ने रामलीला मैदान में बड़ी रैली की है। महंगाई पर हल्ला बोल रैली में भीड़ जुटी थी और अब कांग्रेस नेता निश्चिंत होकर कुछ दिन आराम कर सकते हैं। याद करें कि महंगाई के खिलाफ कांग्रेस ने इससे पहले कब प्रदर्शन किया था! कांग्रेस ने 26 जुलाई 2021 को संसद के मॉनसून सत्र के दौरान महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया था।

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Congress needs continuity राहुल गांधी ट्रैक्टर चला कर संसद पहुंचे थे। एक दिन राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेता साइकिल से भी संसद गए थे। लेकिन उस प्रदर्शन के बाद 14 महीने तक कांग्रेस के नेता महंगाई के खिलाफ सिर्फ ट्विटर पर ही अभियान चलाते रहे। इन 14 महीनों में महंगाई बढ़ती रही थी, बल्कि ज्यादा बढ़ती रही थी।

थोक और खुदरा महंगाई काबू से बाहर रही। लगातार छह महीने से ज्यादा समय से खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक की ओर से तय की गई अधिकतम सीमा से ऊपर रही है। थोक महंगाई दर पिछले एक साल से दहाई में है। लेकिन इस दौरान कांग्रेस बयान देने और सोशल मीडिया में अभियान चलाने के अलावा कुछ नहीं कर रही थी।

Congress needs continuity लोग महंगाई से त्रस्त हैं लेकिन भाजपा ने उनको कहीं हिजाब के विवाद में तो कहीं हलाल मीट और ईदगाह मैदान में गणेशोत्सव मनाने के विवाद में तो कहीं बुलडोजर और मंदिर के विवाद में उलझाया हुआ है। दुर्भाग्य से कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां भी इन्हीं मुद्दों में उलझी हुई हैं। कांग्रेस ने पिछले साल जुलाई में जब महंगाई के मुद्दे पर प्रदर्शन किया था तो उसने निरंतरता नहीं रखी।

Congress needs continuity  अगर उसके बाद भी वह पूरे देश में महंगाई के खिलाफ अभियान चलाती रहती तो उसे इसका राजनीतिक फायदा होता। लेकिन इसका उलटा हुआ। लोग महंगाई से त्रस्त थे फिर भी पांच राज्यों के चुनाव में से चार में भाजपा जीती और एक में आम आदमी पार्टी। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया। जाहिर है कांग्रेस के राजनीतिक अभियान में निरंतरता की कमी है, जिसका उसे खामियाजा भुगतना पड़ा।

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पिछले प्रदर्शन के 14 महीने के बाद कांग्रेस ने जो रैली की है क्या उससे पार्टी कोई मैसेज बनवाने में कामयाब हुई है? ऐसा नहीं लग रहा है। कांग्रेस एक सफल रैली के बावजूद महंगाई का मैसेज नहीं बनवा पाई तो उसका कारण यह है कि पार्टी महंगाई दिखाने वाले दृश्यों का निर्माण नहीं कर सकी। पिछले साल के प्रदर्शन में राहुल और विपक्ष ने बहुत मजबूत प्रतीकों का इस्तेमाल किया था। साइकिल और ट्रैक्टर के जरिए प्रदर्शन प्रभावशाली हुआ था।

Congress needs continuity  लेकिन रामलीला मैदान की रैली में ऐसा कोई ऑप्टिक्स नहीं दिखा। कांग्रेस जब इतनी बड़ी रैली कर रही थी तो उसे लोगों के दिल-दिमाग को प्रभावित करने वाले दृश्य बनवाने चाहिए थे। याद करें कैसे भाजपा जब विपक्ष में थी और रसोई गैस सिलेंडर के दाम में 10 रुपए की भी बढ़ोतरी होती थी तो पार्टी के बड़े नेता सिलेंडर लेकर प्रदर्शन करते थे। सब्जियां महंगी होती थीं तो बड़े नेता सब्जियों की माला पहन कर प्रदर्शन करते थे। लेकिन कांग्रेस की इतनी बड़ी रैली से ऐसा कोई दृश्य नहीं बन पाया।

Congress needs continuity  कांग्रेस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से भी सबक लिया होता तो कुछ ऐसा कर सकती थी। पिछले दिनों केसीआर ने प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर वाले पोस्टर छपवाए, उन पर गैस सिलेंडर की 1,105 रुपए की कीमत छपवाई और उसे सिलेंडर पर चिपका कर उसका एक मैसेज बनवाया।

Congress needs continuity  कांग्रेस भी अपनी रैली में ऐसा कर सकती थी। यूपीए सरकार जब सत्ता से बाहर हुई थी तो रसोई गैस के एक सिलेंडर की कीमत 410 रुपए थी, जो आज 11 सौ रुपए से ज्यादा है।

इससे बड़ा महंगाई का प्रतीक कुछ नहीं हो सकता है। कांग्रेस को रैली में सिर्फ इस पर फोकस करना था। लोग सिलेंडर लेकर आते, दूध की थैलियां और आटे की बोरियां लेकर आते। सब्जियों की माला पहन कर लोग रैली में हिस्सा लेते। पेट्रोल और डीजल की महंगाई के प्रतीक बनवाए जाते। और सबसे ऊपर राहुल गांधी अपने भाषण में सिर्फ महंगाई पर बोलते।

Congress needs continuity  उनके भाषण के कम से कम 90 फीसदी हिस्सा महंगाई पर केंद्रित होना चाहिए थे। लेकिन अफसोस की बात है कि वे उन सारे मामलों पर बोलते रहे, जिनके बारे में भाजपा चाहती है कि वे बोलें। विभाजनकारी नीतियों और नफरत फैलाने की नीतियों पर राहुल का बोलना भाजपा के वोट बढ़वाता है। इसका यह मतलब नहीं है कि उनको इस पर नहीं बोलना चाहिए लेकिन चार सितंबर का दिन महंगाई पर हल्ला बोल का था।

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Congress needs continuity कांग्रेस को निरंतरता की जरूरत

Congress needs continuity  राहुल गांधी ने अपने भाषण में सबसे हैरान करने वाली बात यह कही कि ‘जब कोई विकल्प नहीं बचा तो पार्टी ने जनता के बीच जाने का फैसला किया’। उन्होंने सात सितंबर से शुरू हो रही भारत जोड़ो यात्रा के संदर्भ में यह बात कही। उनके भाषण में जिसने भी यह लाइन लिखी उसे राजनीतिक का ककहरा नहीं मालूम है।

राजनीति में जनता के बीच जाना आखिरी विकल्प नहीं होता है, बल्कि पहला और एकमात्र विकल्प होता है। वह भी विपक्षी पार्टियों की राजनीति तो जनता के बीच ही चलती है। कोई भी विपक्षी पार्टी यह कैसे कह सकती है कि सरकार की गलत नीतियों का मुकाबला वह पहले किसी दूसरे माध्यम या दूसरे विकल्प से कर रही थी और जब कोई विकल्प नहीं बचा तो जनता के बीच जा रही है? यह लाइन बोल कर राहुल गांधी ने स्वीकार किया है पिछले आठ साल से वे और उनकी पार्टी जनता के बीच नहीं जा रहे थे। सवाल है कि जब जनता के बीच जा ही नहीं रहे थे तो फिर क्या राजनीति कर रहे थे?

बहरहाल, तीन बातें साफ हो रही हैं। पहली निरंतरता की कमी है। दूसरी, ऑप्टिक्स बनाने पर काम नहीं होता है और तीसरी बात यह कि भाषण से भी कोई मैसेज नहीं बनता है। कांग्रेस अगर एक मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरती रहे और लोगों के दिमाग में धारणा बनवाए तभी किसी राजनीतिक अभियान का कोई फायदा मिल सकता है। महंगाई, बेरोजगारी और देश की अर्थव्यवस्था की बुरी दशा ये तीन मुद्दे हैं, जिन पर कांग्रेस लगातार फोकस बनाए रखे तो लोग इसे समझेंगे।

क्योंकि ये चीजें सीधे लोगों से जुड़ी हुई हैं। लेकिन इसमें भी उलटा हो रहा है। आधे अधूरे आंकड़ों के दम पर सरकार और भाजपा यह साबित करने में कामयाब हो रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था कमाल की रफ्तार से आगे बढ़ रही है। इसकी दो तीन मिसालें हैं।

जैसे चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर साढ़े 13 फीसदी रही। भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। लेकिन हकीकत यह है कि वास्तविक जीडीपी अब भी 2020 के बराबर है। वित्त वर्ष 2020-21 में माइनस 24 फीसदी का लो बेस होने की वजह से पिछले दो वित्त वर्ष में पहली तिमाही में विकास दर ऊंची रही है।

इसी तरह ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर भारत के पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का हल्ला मचा। पर हकीकत यह है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय ढाई हजार डॉलर है और ब्रिटेन में 47 हजार डॉलर यानी भारत के मुकाबले 20 गुने से ज्यादा। देश के लोगों की कंडिशनिंग ऐसी हो गई है कि वे जीएसटी की वसूली बढऩे का जश्न मनाते हैं। उनको पता ही नहीं है कि उनकी जेब से पैसे निकाल कर सरकार जीएसटी राजस्व बढ़ा रही है।

 अगर कांग्रेस अपनी रैली में इन आंकड़ों की हकीकत बताती तो बेहतर होता। भयावह महंगाई, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था की बदहाली की तस्वीर दिखाने के लिए पावरफुल प्रतीकों का इस्तेमाल करती तो उससे लोगों के दिमाग को प्रभावित करने में मदद मिलती। कांग्रेस ने वह मौका गंवाया है। इसके बावजूद अगर वह अब भी निरंतरता रखती है और भारत जोड़ो यात्रा में भी महंगाई के मुद्दे उठाती है तो उसे राजनीतिक लाभ हो सकता है।

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