Congress management failed in Goa गोवा में फेल हुआ कांग्रेस का प्रबंधन

Congress management failed in Goa

Congress management failed in Goa गोवा में फेल हुआ कांग्रेस का प्रबंधन

Congress management कांग्रेस पार्टी ने गोवा में अपने विधायकों को भाजपा से बचाने का प्रबंधन किया था। जुलाई में जब पहली बार विधायक टूटने की जानकारी मिली तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आनन-फानन में पार्टी के महासचिव मुकुल वासनिक को गोवा भेजे। वे सारे विधायकों से मिले और जब उनको अंदाजा हो गया कि पार्टी के कुछ विधायक मन बना चुके हैं भाजपा में जाने का तो उन्होंने पांच विधायकों को चेन्नई भेज दिया।

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Congress management तब पार्टी तोडऩे की कोशिश कर रहे दिगंबर कामत और माइकल लोबो के पास कुल पांच विधायक थे, जबकि दलबदल कानून से बचने के लिए आठ विधायकों की जरूरत थी। तभी उस समय यह प्रयास फेल हो गया।

Congress management उसके बाद कांग्रेस ने माइकल लोबो को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया। अब बड़ा सवाल है कि चुनाव के बाद लोबो को नेता बनाया ही क्यों था? लोबो पहले कांग्रेस में रहे हैं लेकिन वे भाजपा में चले गए थे और चुनाव से पहले तक भाजपा सरकार में मंत्री थे।

Congress management चुनाव से पहले वे भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में लौटे थे और पार्टी ने उनको व उनकी पत्नी दोनों को टिकट दिया था। दोनों जीत भी गए और जीतने के बाद कांग्रेस ने उनको विधायक दल का नेता बना दिया। यह कांग्रेस की बड़ी गलती थी। इससे पार्टी के पुराने और निष्ठावान नेता नाराज हुए, जिनमें दिगंबर कामत भी एक थे।

कामत को नाराज होने का एक बहाना चाहिए था। वे पार्टी छोडऩे का मौका तलाश रहे थे। कांग्रेस को पता नहीं कैसे इसका अंदाजा नहीं हुआ। वे लगातार विपक्ष में रहते हुए थक गए थे। उनको सत्ता चाहिए थी। पिछली बार उनको उम्मीद थी कि शायद अगली बार कांग्रेस जीते। लेकिन जब कांग्रेस की सीटें और कम हो गईं तो उन्होंने पार्टी छोडऩे का मन बनाया। लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष या प्रभारी किसी को इसका अंदाजा नहीं हुआ।

कांग्रेस इस बात को बिना मतलब के तूल दे रही है कि लोबो की वजह से कामत नाराज हुए। अगर ऐसा है तो फिर लोबो के साथ ही वे भाजपा में क्यों गए हैं? पहली बार भी वे और लोबो दोनों मिल कर ही पार्टी तोडऩे का प्रयास कर रहे थे।

कांग्रेस ने एक गलती यह भी कर दी कि जुलाई में जब लोबो को विधायक दल के नेता पद से हटाया तो किसी को नेता नहीं बनाया। फिर प्रदेश अध्यक्ष गिरीश चोडनकर का इस्तीफा हुआ तो प्रभारी दिनेश गुंडूराव का इस्तीफा नहीं लिया। कांग्रेस को उसी समय नया प्रभारी बनाना चाहिए था। मुकुल वासनिक को ही जिम्मा देना चाहिए थे।

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हालांकि वासनिक की भूमिका को लेकर भी कई नेता संदेह जता रहे हैं। उनको मध्य प्रदेश के प्रभारी से हटाए जाने के बाद इस तरह की चर्चा होने लगी है। ध्यान रहे पिछले ही दिनों पार्टी ने उनको राज्यसभा में भेजा लेकिन मध्य प्रदेश के प्रभारी पद से हटा दिया।

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