Chief Editor सुभाष मिश्र की कलम से – वैज्ञानिक चेतना का अभाव एक बड़ी चिंता

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  • सुभाष मिश्र Chief Editor

28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मद्देनजर हम बात करते हैं कि किस तरह विज्ञान ने खासतौर पर टेक्नालॉजी ने हमारे जीवन में अपना असर छोड़ा है। आज हम लगभग हर क्षेत्र में तकनीक पर निर्भर हुए हैं। बैंकिग से लेकर मेडिकल तक सभी क्षेत्र में टेक्नालॉजी का दबदबा बढ़ा है। पिछले एक दशक में हमारे जीवन में सबसे ज्यादा बदलाव लाया है सोशल मीडिया ने। फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, इंस्टाग्राम अब करोड़ों लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। अब एक दूसरे के बारे में हम इन्ही माध्यमों के जरिए ही जान पाते हैं। एक तरफ हम विज्ञान पर निर्भर होते जा रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ समाज में अभी भी सोच में अवैज्ञानिक पर्याप्त रूप से मौजूद हैं। अंधविश्वास के नाम पर महिला की हत्या कर देना, संतान के रूप में पुत्र की चाहत, ऊंची जाति, नीची जाति, छुआछूत, धार्मिक कट्टरता जैसी भावना अवैज्ञानिक सोच का झंडा बुलंद करती रहती हैं।
पिछले सात दशकों में भारत ने कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रगति की है। अंतरिक्ष, परमाणु विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सराहनीय छलांग लगाई है। 1976 में संसद ने 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 51 ए में एक कर्तव्य को शामिल करके वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। जो प्रत्येक नागरिक के कर्तव्य के रूप में वैज्ञानिक दृष्टिकोण में विकास करने को कहता है लेकिन हम जनता के बीच वैज्ञानिक साक्षरता का प्रचार करने में विफल रह़े हैं। कह सकते हैं कि वैज्ञानिक प्रवृत्ति केवल एक उच्च आदर्श बनकर रह गई है और समाज में नहीं फैल पाई है।
राजनीतिक अनिच्छा अधिकांश नीति निर्माताओं और राजनेताओं ने अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए अपनी सार्वजनिक नीतियों में लोगों की स्थिर विचारधाराओं और विश्वासों को शामिल किया है। भारत में लोगों की अभी भी एक रूढि़वादी विचारधारा है और वे वैज्ञानिक रूप से प्राप्त समाधानों का पालन नहीं करते हैं। हम किसी की धार्मिक आस्था पर चोट नहीं पहुंचाना चाहते लेकिन इन दिनों जिस तरह बाबाओं के दरबार में भीड़ उमड़ रही है और पर्चियों में लोगों के भूत और भविष्य बताने का दावा हो रहा है। क्या ये समाज में वैज्ञानिक चेतना को बढ़ाएंगे? क्या इन बातों को देख-सुनकर आने वाली पीढ़ी किसी वैज्ञानिक अनुसंधान में जुटेगा। खास बात ये है कि इन बाबाओं के दरबार में हमारे जनप्रतिनिधि भी बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और एक तरह वे इन मंचों को अपनी राजनीति महत्वकांक्षा की प्राप्ति का प्लेटफॉर्म समझ रहे हैं। ऐसे में समाज में डिजिटल संस्करण का उपयोग भी अंधविश्वास को पोषित करने में किया जा रहा है।
विज्ञान प्रकृति के रहस्यों को समझने, अपनी बाह्य दुनिया को जानने, तर्क एवं विवेक के आधार पर जांचने-परखने और मानक स्थापित करने की प्रक्रिया है। तर्क, विवेक और जांचे-परखे प्रमाणिक साक्ष्य हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना को वैज्ञानिक चेतना में बदलने का काम करते हैं। वैज्ञानिक चेतना हमें सवाल करने को उकसाती है, चीज़ों और घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए प्रेरित करती है। स्थापित मान्यताओं और विश्वासों को कठघड़े में खड़ा करती है तथा संशय के घेरे में लाकर उनका भौतिक आधार तलाशने का काम करती है। हमें इस ओर अब ध्यान देना होगा। हमारे जीवन में आए वैज्ञानिक प्रभाव का असर हमारी सोच में भी आए तभी समाज का भला हो सकेगा।

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