(Development ) प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से विकास के निर्णयन में जनगणना आवश्यक

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(Development ) प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से विकास के निर्णयन में जनगणना आवश्यक

(Development ) भारत में 12 सालों से जनगणना हुई ही नहीं। ये काम इस साल भी पूरा नहीं हो पाएगा और अगले साल कब होगा, स्थिति स्पष्ट नहीं है। इससे आपके जीवन पर क्या फर्क पड़ेगा, इसी के बारे में आज बात करेंगे। पहले जनगणना न करवाने के पीछे ये तर्क दिया गया था कि पहली प्राथमिकता कोरोना टीकाकरण है. ये हो जाए, तब जनगणना की जा सकती है लेकिन इस बार जनगणना की तारीख आगे बढ़ाते हुए कोई कारण नहीं दिया गया है बस इतना कहा गया है कि 14 जून 2022 के खत में प्रशासनिक सीमाओं को फ्रीज़ करने की तारीख &1 दिसंबर 2022 दी गई थी, इस मियाद को अब बढ़ाया जाता है। सीमाएं 1 जुलाई 202& को फ्रीज़ की जाएंगी। इससे ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि जनगणना होगी कब।

(Development )  इससे पहले 28 मार्च 2019 को मोदी सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन निकालकर 2021 की जनगणना का संकल्प अधिसूचित किया था लेकिन कोरोना की मार और फिर टीकाकरण को प्राथमिकता देते हुए सरकार ने जनगणना को टाल दिया, अब ये 2024 तक टलते नजर आ रहा है।

वैसे कोरोना के बाद भी अमेरिका और चीन जैसे देशों ने जनगणना 2020-21 में किया है। गौरतलब है कि जनगणना का कार्य गृह मंत्रालय के तहत होता है। भारत में इससे पहले 81 साल पहले 1941 में अंतिम बार सेंसस अपने तय समय से लेट हुआ था, तब दुनिया में द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था।

(Development )  जनगणना वह प्रक्रिया हैजिसके तहत प्रत्येक दस वर्ष की अवधि में देश में रह रहे लोगों की संख्या, उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन से संबंधित आँकड़ों कोइकठ्ठा कर उनका अध्ययन किया जाता है तथा संबंधित आँकड़ों को प्रकाशित किया जाता है। भारत अपनी ‘अनेकता में एकता के लिये जाना जाता है।

जनगणना देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, जनसंख्या आदि से संबंधित आंकड़ों के माध्यम से नागरिकों को देश की इस विविधता और इससे जुड़े अन्य पहलुओं का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करती है। 1881 में पहली बार देश में जब जनगणना हुई थी। उस वक्त जनसंख्या 25.&8 करोड़ थी।

वर्तमान में जनसंख्या 141 करोड़ होने का अनुमान है। देश में अंतिम जनगणना 2011 में हुई थी, तब जनसंख्या 121 करोड़ से ज्यादा थी। 2001 से 2011 के बीच भारत की आबादी 18 फीसदी के आसपास बढ़ी थी। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 202& में भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो जाएगी। जनगणना की महत्ता भारते में बहुत पहले ही समझ लिया गया था। ‘ऋग्वेद में 800-600 ईपू में जनगणना का उल्लेख किया गया है।

(Development )  कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कराधान के उद्देश्य से जनगणना को राज्यों की नीति में शामिल करने पर बल दिया गया है। मुगल काल में अकबर के शासन के दौरान प्रशासनिक रिपोर्ट आईन-ए-अकबरी में जनसंख्या, उद्योगों और समाज के अन्य पहलुओं से संबंधित विस्तृत आंकड़ों को शामिल किया जाता था।

केंद्र सरकार ने 2019 में 2021 की जनगणना पर काम करना शुरू कर दिया था और इसके लिए 8,754.2& करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था। जनगणना के लिए घर-घर जाकर डाटा के संग्रह के लिए करीब && लाख कर्मचारियों को तैनात किया जाना था। 2021 की जनगणना दो चरणों में पूरी की जानी थी। पहला चरण सितंबर, 2020 और दूसरा चरण मार्च, 2021 में पूरा किया जाना था, लेकिन महामारी के कारण पहला चरण ही पूरा नहीं हुआ है।

(Development )  राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जनगणना में लेट होने की एक वजह जाति जनगणना की मांग भी है। बिहार, यूपी, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं। 2018 में केंद्र सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए ओबीसी जनगणना करने का वादा किया था।

अब सरकार का रुख बदल गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में कहा है कि जाति गणना संभव नहीं है। समय पर जनगणना नहीं होने से कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। मसलन इसकी वजह से करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को खाद्य सुरक्षा काननू के तहत फ्री में आनाज नहीं मिल रहा है। समय से जनगणना नहीं होने के कारण देश में कोई नई योजना भविष्य के विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं। सरकार के पास कोई ठोस अनुमान नहीं होगा कि कहां किस जगह पर आबादी का दबाव कितना है, कहां किस विषय की आवश्यकता है।

जनगणना के अंतर्गत ही किसी देश की जनसांख्यिकी विशेषता के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। किसी क्षेत्र विशेष के विकास के लिए आवश्यक निर्णयन में जनगणना से प्राप्त आंकड़ों की भागीदारी बढ़ जाती है। जनगणना के आंकड़ों का उपयोग अनुदान के निर्धारण में भी किया जाता है। देश के सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में देने का जिम्मा जनगणना के आंकड़ों पर होता है। इसके आधार पर ही लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है। लिहाजा तय समय पर जनगणना करवाना जरूरी हो जाता है।

गौरतलब है कि साल 2026 में वर्तमान परिसीमन अवधि समाप्त हो जाएगी। लिहाजा लोकसभा में राजनीतिक संतुलन का बदलना तय है। यदि जनगणना में देरी होती है तो कई राज्यों के प्रतिनिधित्व भी प्रभावित होगी। जनसंख्या आंकड़ों के अनुपात पर ही स्वास्थ्य और शिक्षा का बजट तय होता है। दस साल तक सरकारें इन्हीं आंकड़ों के आधार पर प्रोजेक्शन बनाती है।

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