build तैयार हैं कुम्हार, बनाएंगे मिट्टी के गिलास, कटोरी, थाली और प्लेट

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राजकुमार मल

build कुम्हार नहीं, मिट्टी शिल्पकार कहिए

 

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build कुम्हार नहीं, मिट्टी शिल्पकार कहिए

build भाटापारा– प्लास्टिक के बर्तन पर बंदिश के बाद कुम्हार खुश हैं। build पहले से ही कुल्हड़ बना रहा यह वर्ग बाजार की मांग का इंतजार कर रहा है ताकि आर्डर के मिलते ही कप,प्लेट, थाली और गिलास का बनाया जाना चालू किया जा सके।

build कुम्हार नहीं, मिट्टी शिल्पकार कहिए क्योंकि नए आदेश के बाद संभावनाओं का यह विशाल क्षेत्र खुल रहा है। इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए पहले से ही माटी कला बोर्ड का गठन किया जा चुका है। केंद्र सरकार के आदेश के बाद देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिन इस क्षेत्र के लिए कैसे होंगे ? ताजा परिस्थितियों के बीच बाजार ने ऐसे कुम्हारों की खोज-खबर लेना चालू कर दिया है, जो मांग की आपूर्ति करने में सक्षम हैं।

मिलते हैं यहां

build अपने जिले की 20 से 30 किलोमीटर की परिधि में बलौदा बाजार जिले के भटगांव, बिलाईगढ़ और भाटापारा विकासखंड के ग्रामीण अंचलों में भी माटी शिल्पकार कारोबार चला रहे हैं।इसके अलावा पड़ोस के तखतपुर,रतनपुर,मल्हार, मस्तूरी,सीपत,बिल्हा,और दगौरी में कुम्हारों की अच्छी खासी-संख्या है |मालूम हो कि देवी मंदिरों के लिए मिट्टी के पात्र इन्हीं क्षेत्रों से पहुंचते हैं।

देख रहे इसमें संभावना

build कुम्हार अब गिलास,प्लेट, थाली और कुल्हड़ में अच्छी मांग की संभावना देख रहें हैं। नवरात्रि पर ऐसे पात्र बनाने का अनुभव पहले से ही है। इसके अलावा सांचा जैसे संसाधन से दूर यह वर्ग नए आदेश में उज्जवल भविष्य देख रहा है क्योंकि यह बाजार निरंतर मांग वाला क्षेत्र है और इसे उपभोक्ताओं की स्वीकार्यता पहले से ही मिली हुई है।

आशा इनसे भी

build कुम्हारों की नजर प्रदेश के माटी कला बोर्ड पर भी है। सरकारी कार्यालयों के कैंटीन में भी मांग की लंबी सूची की संभावना है। सरकार का फरमान है और सरकारी कैंटीन। इसलिए पहली मांग यहां से ही निकलनी है। लिहाजा कुम्हार, माटी कला बोर्ड से मदद की आस में है ताकि आदेश के पालन की शुरुआत यहीं से हों और बाजार की स्वीकार्यता आसान बनाई जा सके।

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नए भारत में स्वास्थ्य और पर्यावरण को लेकर लोग चिंतित हैं और अलग-अलग तरह के विकल्प की तलाश में हैं। एक ऐसा ही विकल्प मिट्टी से बने बर्तन हैं, जो पूर्ण रूप से हमें प्रकृति के निकट रखता है और साथ ही इसके इस्तेमाल से ना ही शरीर को किसी तरह का नुकसान है और ना ही प्रकृति को।

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– डॉ अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट, फॉरेस्ट्री, टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

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