Bhatapara News : बियासी नागर 800, रोपाई के लिए 4500 रुपए…

Bhatapara News :

राजकुमार मल

Bhatapara News : नहीं मिल रहे हल-बैल, मजदूरों की भी हो रही कमी

Bhatapara News : भाटापारा- बियासी के लिए हल- बैल का संकट। रोपाई के लिए मजदूरों का टोटा। बेहतर बारिश के बाद जोर पकड़ रही खेती- किसानी के इस काम पर जो पैसे लग रहे हैं, वह किसानों के होश उड़ा रही है। इसमें संकट के दिन आने वाले हैं क्योंकि यह दोनों काम अभी बचे हुए हैं।

खरीफ सत्र की शुरूआत कई तरह की दिक्कत के साथ शुरू हुई है। अब यह बढ़त की ओर नजर आती है क्योंकि जहां नर्सरी तैयार हो चुकी है, वहां रोपाई के लिए मजदूरों की जरूरत है।

खुर्रा बोनी कर चुके किसानों को अब बियासी करना है। इसलिए हल-बैल की व्यवस्था करनी है। बेहद अहम यह दोनों काम इसलिए संकट में आ चुके हैं क्योंकि रोपाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं और बियासी के लिए हल-बैल की उपलब्धता नहीं के बराबर होती जा रही है।

संकट पहली बार

बोनी विधि से खेती करने वाले किसान इस बरस बेहद परेशान हैं क्योंकि बियासी के लिए समय पर हल-बैल नहीं मिल रहे हैं। यदि मिल रहे हैं तो उनके भाव 800 से 900 रुपए बोले जा रहे हैं।

तकनीक के इस दौर में इस विधि से बियासी के काम में लग रही यह रकम पसीने छुड़ा रही है। इसमें बढ़त की आशंका बनी हुई है क्योंकि कुल रकबा में से लगभग 70 फ़ीसदी में खेती इसी विधि से की गई है।

यहां मजदूरों का टोटा

रोपा पद्धति से खेती करने वाले किसान भी कम परेशान नहीं है। बदलते दौर में खेती से पीछे हटते खेतिहर मजदूरों का मिलना टेढ़ी खीर है।

रोपा लगाने वाली मशीनें तो आ गई हैं लेकिन परंपरागत रोपाई पर भरोसा अभी भी बरकरार है। विपरीत परिस्थितियों के बीच रोपा पद्धति से खेती करने वाले किसानों को इस बार 4200 से 4500 रुपए एकड़ की दर से भुगतान करना पड़ रहा है। इस काम में भी वर्तमान दर के बढ़ने के प्रबल आसार बन रहे हैं।

यह समस्या अब भी

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तरल यूरिया की उपलब्धता के बाद भी किसान दानेदार यूरिया को ही प्राथमिकता दे रहा है। भरपूर उपलब्धता के सरकारी दावों के बावजूद किसान यूरिया की खरीदी 600 रुपए और डीएपी के लिए 1700 रुपए देने के लिए मजबूर हैं।

खुलेआम की जा रही, बाजार की यह गैर वाजिब गतिविधियां देख कर भी निगरानी एजेंसियां ठोस कार्रवाई से दूरी बनाए हुए हैं। फलस्वरुप बाजार के हौसले बुलंद हैं।

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