Bhanupratappur News धर्मसंकट में आदिवासी समाज के भाजपा – कांग्रेस के नेता 

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Bhanupratappur News मूलभूत समस्याओं को छोड़ आरोप प्रतिरोप में लगी हैं दोनों पार्टियां

Bhanupratappur News  भानुप्रतापपुर। भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में रोज एक नया मोड़ आ रहा है। भाजपा एवं कांग्रेस दोनो राष्ट्रीय पार्टी अपने रीति नीति से आमजनता को प्रभावित करना छोड़कर दोनो एक दूसरे पर आरोप प्रतिरोप लगाने में लगे हुए हैं। वही आदिवासी समाज भी चुनाव को लेकर मुस्तैद दिखाई दे रहे है व गांवो में लगातार बैठक लेकर सर्व आदिवासी समाज के चयनित प्रत्याशी को भारी मतों से जीताने धार्मिक रीति के हवाले देते हुए आदिवासी को शपथ दिलाया जा रहा हैं।

Bhanupratappur News  बता दे कि भानुप्रतापपुर में वर्षों से जिला बनाने, ट्रांसपोर्ट नगर एवं बाईपास रोड को मांग हमेशा से उठती रही है इनके अलावा क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा,सड़क,बिजली पानी जैसे मूलभूत समस्याए है जो क्षेत्रवासियो के लिए ज्वलंत समस्या भी बनी हुई है। चुनाव आते है घोषणा कर पार्टी जीत भी जाती है, लेकिन समस्या आज भी यथावत बनी हुई है। भानुप्रतापपुर उप चुनाव में इसबार जनता कमरकस ली है कि यदि हमारे मांग पूरी नही होने कि स्थिति में किसी भी राष्ट्रीय पार्टी को समर्थन नही दिए जाने की बात सामने आ रही है। वही भाजपा एवं कांग्रेस आम जनता की समस्याओं को सुनने व निराकरण करने के बजाय एक दूसरे पर रेप, छेड़छाड़ व पास्को एक्ट , अपराध कायम करने वाली बातें करते हुए आमजनों को गुमराह करने में लगे हुए है।

विधानसभा उप चुनाव में इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबले होने जा रहा है। गत 2008 के भानु विधानसभा चुनाव में आंकड़ा देखा जाए तो भाजपा आगे रही दूसरे नम्बर पर निर्दलीय व तीसरे स्थान पर कांग्रेस । कही इस बार भी ऐसी स्थिति निर्मित न हो जाए। यह तो समय बताएगा।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि भानुप्रतापपुर को जिला बनाया जाएगा लेकिन यह केवल वादा साबित हुआ। इसबार भी उपचुनाव में भानुप्रतापपुर को जिला की सौगात नही मिलने वाली है दोनों पार्टियों के द्वारा आम जनता की ध्यान को भटकाने का प्रयास करते हुए आरोप प्रत्योप लगा रहे है। यदि भानुप्रतापपुर को जिला बनाया गया होता तो मूलभूत जैसे समस्याओ का निदान हो जाता लेकिन तामाम सुविधाओं के बावजूद भी भानुप्रतापपुर को जिला नहीं बनाए जाना भी नेताओ की ओझि मानसिकता को प्रदर्शित कर रहा है।

आदिवासी समाज के भाजपा – कांग्रेस के नेता पड़े धर्मसंकट में

भाजपा कांग्रेस के लड़ाई से परे रहकर सर्व आदिवासी समाज चुनावी दम भर रही है। जनता दोनों राजनीतिक दलों में से हमेशा की तरह किसी एक दल के उम्मीदवार पर मुहर लगाएगी या फिर आरक्षण की मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतरी सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार को कीमती वोट देगी। ये परिणाम ही बताएगा, लेकिन सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी कमर कस लिए हैं। जीत का दावा करते फिर रहे हैं। वही कांग्रेस और बीजेपी में सदस्य और पदाधिकारी बने आदिवासी नेता धर्मसंकट में पड़ गए हैं। आदिवासी समाज के लोग कांग्रेस और बीजेपी के सदस्य हैं। इनका झुकाव अपने अपने पार्टी की ओर है। आदिवासी आरक्षण का मुद्दा इन पर भी लागू होता है। पर आरक्षण जैसे गंभीर मुद्दा को दरकिनार कर पार्टी पर आस्था अधिक क्यों है।

समाज के प्रत्याशी को वोट करने की शपथ

Bhanupratappur News  सर्व आदिवासी समाज ने दावा किया था कि प्रत्येक गांव से लगभग 400 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरेंगे लेकिन यह तो नहीं हो पाया लेकिन सर्व आदिवासी समाज के तरफ से 33 लोगों ने नामांकन दाखिल किया था। इनमें से 17 का नामांकन विभिन्न कारणों के चलते जांच में खारिज हो गया। सर्व आदिवासी समाज की ओर से 16 निर्दलीयों का नामांकन सही पाया गया था। तीन दिनों की गहन चर्चा के बाद सर्व आदिवासी समाज की ओर से एक प्रत्याशी अकबर कोर्राम को बनाया गया है। बाकी प्रत्याशी घोषित होने पर 14 लोगों ने नामांकन वापस ले लिया।

Bhanupratappur News   फिलहाल समाज के ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। भाजपा कांग्रेस के दांवपेंच के बीच सर्व आदिवासी समाज नई चुनौती बनकर सामने आई है। कांग्रेस और बीजेपी बलात्कार, गेंगरेप की मामला सामने आने के बाद अपनी साख बचाने शिकवा शिकायत जोरशोर से कर रहे हैं। पर दोनों ही पार्टी को कड़ी टक्कर देने सर्व आदिवासी समाज ने एक उम्मीदवार अकबर कोर्राम पर सर्वसम्मति से दांव खेलकर उपचुनाव को त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है।

क्या कहते है राष्ट्रीय पार्टी समर्पित आदिवासी नेता

Bhanupratappur News  भानुप्रतापपुर उप चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के द्वारा अपने प्रत्याशी उतारे जाने के बाद समाज व राष्ट्रीय पार्टी से जुड़े नेताओ के लिए समाज के द्वारा उतारे गए प्रत्याशी गले मे गले की फंसे बन गई है। कुछ स्थानीय नेताओं चर्चा की गई तो हम अपने पूरी जिंदगी पार्टी के लिए काम कर इस ओहदे तक पहुचे है,यदि अब हम पार्टी छोड़ समाज के लिए लड़ते है तो हमारी सालों की मेहनत समाप्त हो जाएगी, क्योंकि एक साइड गड्ढे है तो वही दूसारी तरफ खाई आखिर करे तो करे क्या?

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