Bhanupratappur : बैकुंठ से भी श्रेष्ठ हैं वृन्दावन की धाम-पंडित अविनाश

Bhanupratappur : बैकुंठ से भी श्रेष्ठ हैं वृन्दावन की धाम-पंडित अविनाश

श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस

भानुप्रतापपुर। श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस को पंडित अविनाश महराज ने महारास, श्रीकृष्ण मथुरागमन, कंशवध एवं रूखमणी विवाह की कथा स्रोताओं को विस्तारपूर्वक बताया।

भक्तों को भगवान से अलग करने वाले को नारायण कभी माफ नही करते। ब्रम्हाजी ने एक वर्ष तक गोपी व गाय, बछड़ो को भगवान से दूर किया था इसलिए उन्हें माफ नही किया। राम को त्रेता, विष्णु जी को द्वापर एवं लक्ष्मी नारायण भगवान को सतयुग के कीर्ति यश रही

जबकि हनुमान जी ने भगवान राम व माता सीता को मिलाने का काम किया था, इसीलिए हनुमान जी की कीर्ति यश चारो युग मे फैला हुआ है। वही हनुमान जी के तरह ही श्री साई समिति के द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से भक्त व भगवान को मिलाने का पुनीत कार्य किया है, नारायण भगवान की कृपा समिति के सदस्यों पर हमेशा बनी रहेगी।

महराज जी ने कहा कि श्री वृन्दावन धाम की महिमा बैकुठ से भी श्रेष्ठ बताया गया है, संसार को मुक्ति देने वाली को भी श्रीकृष्ण धाम में मुक्ति मिल जाती है। यहा आज भी राधारानी व कृष्ण निवास करती है। वृन्दावन वन में ऐसी मान्यता है कि रात को शेज सजाते है, लोटा में पानी, दातौन एवं पान रखा जाता है, सुबह सेज बिखरा, लोटा खाली, दातौंन चबे हुए मिलता है। प्रतिदिन राधारानी व कृष्ण


रासलीला होती है, रात को यहा पर किसी को जाने की इजाजत नही है।

ब्रज की गोपी के सम्बंध में श्री महाराज ने कहा कि गोपी व भगवान का मिलन स्त्री व पुरूष का नही बल्कि भक्त व भगवान, आत्मा व परमात्मा का मिलन है। गोपी की परिभाषा जिसके प्रत्येक इंद्रियां में कृष्ण रसपान करे उन्हें ही गोपी कहते है। सनातन धर्म चार वेद सामवेद, ऋग्वेद, अजुर्वेद व अथर्ववेद जिनके तीन कांड ज्ञान कांड, उपासना कांड के 16

हजार , व कर्म कांड 80 हजार मंत्र है वही गोपी का रूपधारण किये हुए है। ब्रजधाम से अक्रूर जी के साथ भगवान कृष्ण व बलराम भगवान मथुरा गए व कंश का वध किया।

रुक्मणी कृष्ण मंगल
का सरस वर्णन किया गया। उन्होंने बताया कि रुकमणी
जी तो साक्षात लक्ष्मी जी के अंश से ही राजा विश मक्की
जो भगवान द्वारिकाधीश श्री कृष्ण जी की विशिष्ट गुणों को जानकर मन से है अपन
में वर्ण कर चुकी थी। कुण्डिनपुर के भीष्मा की पुत्री राजकुमारी रुकमणी ने जाना कि विवाह शिशुपाल के साथ किया जाना सुनिश्चित हो
तब वह भगवान कृष्ण को 7 पंक्तियों का एक पत्र
लिखकर मन की बात कहती है जिसे भगवान श्रीकृष्ण
पढ़कर रुकमणी का हरण कर लिया और द्वारिका पुरी में
बड़े आनंद के साथ रुक्मणी और श्री कृष्ण जी का ब्याह
संपन्न हुआ, यही रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण की प्रथम
पटरानी बनी

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