(Aaj ki Jandhara) आज की जनधारा : सुभाष की बात – शिक्षा की परीक्षा 

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(Aaj ki Jandhara)  सुभाष की बात – शिक्षा की परीक्षा

(Aaj ki Jandhara)  शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि ये तीन ऐसे मूलभूत अवधारणाएं हैं जो किसी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश का भविष्य बनाने में और उसे संवारने के लिए शिक्षा का मजबूत होना उतना ही आवश्यक है जितना किसी व्यक्ति के शरीर के सभी अंगों का सुचारु रूप से काम करना, लेकिन हाल ही में जारी एएसईआर रिपोर्ट में शिक्षा जगत से जुड़े कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये हैं, जिसमें सरकारी स्कूलों में एनरोलमेंट बढऩे के आंकड़े जहां सुकूनदेह हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के सामने ट्यूशन पढऩे जाने का बढ़ता ग्राफ चिंताजनक है।

(Aaj ki Jandhara) 2018 के बाद लगभग 4 सालों के लम्बे अंतराल के बाद जारी किये गए एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट कई मुद्दों पर हमे सोचने के लिए मजबूर कर रही है। यह रिपोर्ट और ख़ास इसलिए भी है की इस बीच कोरोना काल ने बच्चों के शिक्षा और मनोविज्ञान पर गहरा प्रभाव डाला है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 616 जिलों और 19,060 गांवों से आंकड़े जुटाए गए हैं। वहीँ 3,74,544 घरों और 3 से 16 वर्ष की आयु के 6,99,597 बच्चों को शामिल किया गया है।

(Aaj ki Jandhara) प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा तैयार किये रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 के बाद से सरकारी स्कूलों के एनरोलमेंट में काफी वृद्धि हुई है। साल 2018 के सर्वे में यह संख्या 65.6 प्रतिशत थी, जो साल 2022 में बढ़कर 72.9 प्रतिशत हो गई। लेकिन बच्चों में निजी ट्यूशन लेने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी होना भारतीय एजुकेशन सिस्टम के ऊपर सवाल खड़े करतें हैं। चिंता की बात यह भी है की भारत में स्कूल न जाने वाली लड़कियों का अनुपात 2022 में अब तक के सबसे निचले स्तर यानी दो प्रतिशत पर आ गया है। इनमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ ये तीन ऐसे राज्य हैं जिनमें 6-14 वर्ष की 10 फीसदी से अधिक लड़कियां स्कूलों से बाहर हैं।

(Aaj ki Jandhara) गौर करने वाली बात है की 2008 में, राष्ट्रीय स्तर पर 15-16 आयु वर्ग की 20 प्रतिशत से अधिक लड़कियों का स्कूलों में नामांकन नहीं हुआ था। 10 साल बाद, 2018 में यह आंकड़ा घटकर 13.5 प्रतिशत हुआ और 2022 में 7.9 प्रतिशत रह गया। लेकिन तीन राज्यों मध्य प्रदेश में 17 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 15 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 11.2 फीसदी आंकड़ें गहन सोच के लिए मजबूर कर रहें हैं।

वहीँ इस रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के ग्रामीण स्कूलों में कक्षा 3 के छात्रों की पढऩे की क्षमता में खतरनाक गिरावट देखी गई है क्योंकि ऐसे छात्रों में से केवल 20.5फीसदी छात्र ही कक्षा 2 की पुस्तकें पढ़ सकतें हैं। एएसईआर 2018 की रिपोर्ट की तुलना में बच्चों की पढऩे की क्षमता में 7 प्रतिशत अंकों की गिरावट भारतीय एजुकेशन सिस्टम के लिए चिंता का विषय बन गया है।

(Aaj ki Jandhara) एक तरफ हम क्वालिटी एजुकेशन की बात कर रहें हैं और दूसरी ओर हमारे सामने ऐसे आंकड़ों का आना शिक्षा पद्धति से लेकर शिक्षा के लिए किये गए हज़ारों प्रयासों की विफलता बयां कर रहें हैं। इतिहास पर नजऱ डालें तो इस विषय पर वर्ष 1998 में राजीव गाँधी शिक्षा मिशन के समय से कार्य शुरू कर दिया गया है और तब से लेकर आज तक अरबो का बजट खर्च हो चुका है पर क्वालिटी उसी दर से गिरते चली गयी है।

(Aaj ki Jandhara) दूसरी ओर शिक्षा के नाम पर मोटी कमाई करने वाले प्राइवेट संस्थान पिछले 2 दशकों से फलते-फूलते गए हैं और सरकारी दावे धरे के धरे रह गए हैं और एएसईआर की रिपोर्ट एजुकेशन सिस्टम को आइना दिखा रहें हैं।

नयी शिक्षा नीति को लागू करने और क्रियान्वयन कराने से लेकर शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और अन्य लगभग 55 योजनाएँ केंद्र-राज्य द्वारा चलाई जा रही है। वहीँ हालिया आंकड़ें तो केवल 8वीं तक के बच्चों की है लेकिन 12वीं के छात्र-छात्राओं की भी यही स्थिति है।

(Aaj ki Jandhara) कोरोना के आने के बाद से लर्निंग लॉस के अलावा क्वालिटी एजुकेशन प्रभावित हुआ है, साथ में बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी काफी बदलाव देखा गया है। इसके लिए केवल और केवल दिशात्मक प्रयासों के साथ बहुआयामी चीज़ों को भी शामिल करना होगा।

स्टूडेंट का फोकस बने रहे इसके लिए योग, स्पोर्ट्स और अन्य गतिविधियों पर भी ध्यान देना होगा, जिससे स्टूडेंट्स का फोकस पढ़ाई पर बने साथ ही उनका मन खुश रहे। चुनौतियों से निपटने के लिए प्रयास तो करना होगा, लेकिन केवल सरकार नहीं, पेरेंट्स टीचर को भी अपनी ओर से आगे बढ़कर कार्य करना होगा।

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