(Aaj ki Jandhara) विनोद कुमार शुक्ल ने पत्रिका का किए सराहना
(Aaj ki Jandhara) रायपुर ! आज की जनधारा की साहित्य वार्षिकी पत्रिका का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के हाथों सोमवार हुआ। आज की जनधारा की ओर से प्रकाशित पत्रिका का यह दूसरा संस्करण है। पत्रिका आजादी के 75 वर्ष और हिंदी साहित्य विषय पर आधारित है इस पत्रिका को आज के जन धारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्रा और अतिथि संपादक भालचंद्र जोशी ने किया।
(Aaj ki Jandhara) विनोद कुमार शुक्ल इस पत्रिका का काफी सराहना की। उन्होंने कहा की पता नहीं क्यों मुझे उम्मीद रहती है की अच्छी पत्रिका निकले चाहे वह पहले से निकली हो या निकल रही हो लेकिन मेरे मन में यह लालसा रहती है उन्होंने कहा पता नहीं क्यों छत्तीसगढ़ में बहुत दिनों से एक सुना पन और सन्नाटा लग रहा था। लेकिन सुभाष मिश्र जी ने जैसे बताया की आज की जनधारा की साहित्य वार्षिकी निकाली है जिसे भालचंद्र जोशी ने संपादित किया है तो मैं नई उम्मीद से फिर भर गया….मुझे बहुत अच्छा लगा कि मेरी उम्मीद की पूर्ति सुभाष जी ने कर दी….
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(Aaj ki Jandhara) मैं हमेशा साहित्य के मामले में सुभाष मिश्र पर बहुत ज्यादा भरोसा करने लगा हूं और यह मैं अंधविश्वास से नहीं कह रहा हूं मैं उनके साथ होने के अनुभव के विश्वास से कह रहा हूं मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं कि छत्तीसगढ़ में आज की जनधारा की नई साहित्य वार्षिकी निकाली है और यह अच्छी पत्रिका लोगों में लेखकों के बीच मैं पूरे भारतवर्ष में जाना जाए यही मेरी शुभकामनाएं है !
(Aaj ki Jandhara) संपादक भालचंद्र जोशी की बात
पत्रिका के संपादक भालचंद्र जोशी ने कहा कि आज के समय में अधिकांश मीडिया घरानों का चरित्र राजनीति को खुश करके पद, प्रतिष्ठा, आर्थिक लाभ, सम्मान, फेलोशिप और विदेश यात्राओं का लोभी होता जा रहा है। अब प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लगभग अधिकांश जगह से कला, साहित्य और संस्कृति के लिए तेजी से जगह कम होती जा रही है।
अब किसी भी मीडिया घराने की प्राथमिकता में यह बातें नहीं रही। राजनीतिक चरण वंदना के अतिरिक्त अधिकांश मीडिया घरानों की प्राथमिकता में उपलब्ध या गढ़ी गई सनसनीखेज खबरें और पूँजीपतियों के सम्मान और उनके हित की खबरें छापना प्रमुख हो गई है।
(Aaj ki Jandhara) ऐसे समय में दैनिक समाचार पत्र ‘आज की जनधारा’ के सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक सरोकार न सिर्फ बचे हुए हैं बल्कि वह इन सब को समाज हित में प्राथमिकता पर रखना चाहता है।
यही कारण है कि ‘आज की जनधारा’ प्रतिवर्ष एक साहित्य वार्षिकी प्रकाशित करता है जिसमें अपने समय के सामयिक और ज्वलंत प्रश्नों से संबंधित गंभीर वैचारिकी लेख और स्तरीय साहित्यिक सामग्री होती है, जिसकी देश भर में प्रशंसा होती है।
(Aaj ki Jandhara) छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय दैनिक ‘आज की जनधारा’ समाचार- पत्र सच को जिस धैर्य और साहस के साथ प्रस्तुत करता है, आज के संकटग्रस्त समय में मीडिया के लिए यह सामान्य बात नहीं रह गई है। ‘आज की जनधारा’ के प्रधान संपादक श्री सुभाष मिश्र एक प्रगतिशील लेखक और पत्रकार के साथ-साथ रंगकर्मी भी हैं।
(Aaj ki Jandhara) श्री सुभाष मिश्र ने ‘आज की जनधारा’ की साहित्य वार्षिकी 2023 के संपादन के दायित्व को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ ख्यात लेखक भालचंद्र जोशी को सौंपा तो तय किया कि साहित्य वार्षिकी को महज कहानियों और कविताओं का संकलन न बनाते हुए किसी विचार विशेष पर केंद्रित किया जाए, इसलिए इस अंक को ‘आजादी के 75 बरस और हिंदी साहित्य’ विषय पर केंद्रित किया है ।
अंक को आज के समय में राजनीति, समाज, साहित्य, संस्कृति और विचार को साहित्य की जरूरत में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। प्रस्तुत अंक में यह भी कोशिश रही कि इस विषय पर अधिकांश पक्ष पर बात हो। कोई भी प्रस्तुति या प्रयास अपने आप में संपूर्ण नहीं होता लेकिन एक सार्थक शुरुआत आगे के रास्ते खोलने में मददगार होती है।
(Aaj ki Jandhara) ‘आज की जनधारा’ के वार्षिक विशेषांक-2023 जो लगभग 350 पृष्ठों का है; इस विशेषांक में देश के बड़े और महत्वपूर्ण लेखकों की कहानियाँ, कविताऍं व्यंग्य,उपन्यास -अंश और आजादी के 75 वर्ष के संदर्भ में साहित्य, समाज, संस्कृति, स्त्री विमर्श और दलित विमर्श को लेकर गंभीर मूल्यांकन और विश्लेषण के लेख हैं।
इस बार इस अंक में आज़ादी के बाद के उपन्यास, कहानी, कविता आलोचना, नाटक,व्यंग्य,गीत,दलित विमर्श,स्त्री विमर्श, साहित्यिक पत्रकारिता,कथेतर गद्य,फिल्मों में साहित्य और आज़ादी के बाद महिला आलोचकों की उपस्थिति पर हमारे समय के महत्वपूर्ण आलोचकों के लेख हैं। इन आलेखों में अकादमिक शोध विरक्ति के साथ निरी जानकारियों की अनुपस्थिति है लेकिन विगत 75 वर्ष में विधा की उपस्थिति , सक्रियता और ज़रूरी मूल्यांकन के साथ इतिहास- दृष्टि मौज़ूद है। लेख- खंड में सुधीश पचौरी, विनोद शाही,सत्यनारायण, विजया शर्मा, ओम निश्चल, अरुण होता,वैभव सिंह, राकेश बिहारी,बजरंग बिहारी तिवारी, नीरज खरे, राहुल सिंह ,आशुतोष, प्रियम अंकित, प्रदीप जिलवाने ,अनुराधा गुप्ता,
चित्तरंजन, कैलाश मंडलेकर ,मीना बुद्धि राजा, डॉ सुनीता ,प्रमोद कुमार तिवारी ,रश्मि रावत,आनंद पांडे और अनिल कर्मा के लेख हैं। तथा ममता कालिया, प्रियंवद, ज्ञानप्रकाश विवेक, टेकचंद, उर्मिला शिरीष, उर्मिला शुक्ल, जयश्री राय, शैलेय, शर्मिला जालान, सिनीवाली, निधि अग्रवाल , विनीता परमार, प्रेम रंजन अनिमेष और किंशुक गुप्ता की कहानियाँ, कविता का उपन्यास और संजय जैन का व्यंग लेख है। साथ ही रामदरश मिश्र , राजेश जोशी, अष्टभुजा शुक्ल, विष्णु नागर,यश मालवीय, सुरेश कुशवाहा तन्मय, अच्युतानंद मिश्र, संतोष कुमार चतुर्वेदी, अनुराधा सिंह, विजय सिंह, राजेश नीरव,राही डूमर चीर और रूपम मिश्र की कविताऍं भी हैं।
विशेषांक का आवरण सुप्रसिद्ध चित्रकार प्रदीप कनिक की पेंटिंग है और अंदर के रेखा चित्र जयंत देशमुख, और बृजेश बड़ोले के हैं।