Aaj kee janadhaara : आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से : बहुत जायकेदार है ये ‘कटहल’ 

Aaj kee janadhaara :

Aaj kee janadhaara आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से : बहुत जायकेदार है ये ‘कटहल’ 

Aaj kee janadhaara आज हम दो फिल्मों की बात करने जा रहे हैं उनमें से पहली है जो कुछ दिन पहले रीलिज हुई द केरला स्टोरी है। इस फिल्म को इन दिनों एक खास वर्ग द्वारा काफी प्रचारित किया जा रहा है। इस फिल्म में मुख्य रूप से ये दिखाया है कि केरला में किस तरह लव जिहाद चलाया जा रहा है और करीब 32 हजार लड़कियों को बरगला कर आईएसआईएस में शामिल कराया जा रहा है। फिल्म के निर्माताओं ने ये आंकड़ा कहां से लाया, इस फिल्म की सच्चाई से परे है जैसा की ज्यादातर फिल्में होती हैं लेकिन इसे सच बता कर प्रचारित किया जा रहा है। जो की बहुत खतरनाक साबित हो सकता है इससे दो समुदाय के बीच टकराव भी हो सकती है। इसके ठीक उलट इस शुक्रवार नेटप्लिक्स पर रीलिज हुई है फिल्म ‘कटहल’ जो आपको गुदगुदाती है और हल्के फुल्के अंदाज में बड़े बड़े मुद्दों को छूती है ये फिल्म। द केरला स्टोरी जैसी फिल्म में जिस तरह तथ्य को तोड़-मरोडक़र पेश किया जा रहा है इसे नफरत का व्यापार भी कह सकते हैं जबकि इस दौर को जरूरत है कटहल जैसी फिल्म की। इस फिल्म के लेखक अशोक मिश्र का संबंध रायपुर से रहा है।

वो यहीं के रहने वाले हैं। ऐसे में इस फिल्म को देखने के बाद गर्व होता है। कटहल चोरी की एक सामान्य घटना पर कैसे पूरी फिल्म का तानाबाना बुना गया है वो काफी मजेदार है। फिल्म का हर सीन आपको ताजा लगता है। छोटा सा छोटा किरदार आपको याद रह जाता है यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। दूसरी तरफ द केरला स्टोरी में दिखाई गई काल्पनिक बातों का असर इतना गहरा हो रहा है कि अब केरला सरकार को अपने राज्य की छवि को लेकर सफाई देनी पड़ रही है। कई राष्ट्रीय अखबारों में बकायदा विज्ञापन देकर केरला सरकार बता रही है कि दरअसल केरल क्या है कैसे वो देश के सबसे उन्नत राज्यों में शुमार है। फिल्म में जैसा दिखाया गया है दरअसल केरल वैसा नहीं है। केरला और अरब देशों के बीच संबंध कई सदियों से है। केरल में बड़ी तादाद में लोग अरब देशों में जाते रहे हैं और वहां से धन कमा कर अपने राज्य को समृद्ध बनाते रहे हैं। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दुनिया भर के भारतीय प्रवासी जितनी विदेशी मुद्रा देश में भेजते हैं, केरल का 40 फ़ीसदी हिस्सा होता है। उसके बाद पंजाब, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश का स्थान है। ऐसे में अगर इस फिल्म को देखकर अगर कोई केरला को इस तरह की कट्टरता और साजिश की धरती मान बैठता है तो वो बहुत बड़ी भूल करता है। केरला सरकार कहती है कि भारत की पहली डीजिटल यूनिवर्सिटी केरला में खुली। हर किसी को बिजली देने वाला देश का पहला और एकलौता राज्य है। कोविड वैक्सिनेशन के मामले में केरला सबसे आगे था। इसके अलावा शिक्षा, पर्यटन, सोशल वेलफेयर के मामले में इस राज्य ने देश और दुनिया में खास मुकाम स्थापित किया है। चलिए एक बार फिर लौटते हैं कटहल की ओर। कटहल जैसी फिल्म एक और संदेश देती है, वो ये है कि यदि आपके पास अच्छी कहानी है, तो फिर करोड़ों रुपये लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है। फि़ल्म की कहानी ही उसे दर्शकों तक पहुँचा देगी। अशोक मिश्रा के लेखन का जादू पूरी फि़ल्म में सर चढ़ कर बोलता है।

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सानिया मल्होत्रा ने पुलिस अधिकारी महिमा की भूमिका बहुत अच्छे से निभाई है। महिमा दलित वर्ग से आती है, और उस कारण उसे जो कुछ झेलना पड़ता है। उसे सानिया के चेहरे पर बहुत अच्छे से देखा जा सकता है। बहुत सहज होकर उसने एक दलित वर्ग से आकर पुलिस अधिकारी बनी लडक़ी का किरदार निभाया है। यह पुलिस अधिकारी अपने अधीनस्थ कान्स्टेबल से प्रेम करती है जो सवर्ण वर्ग से है। अनंत जोशी ने सौरभ द्विवेदी का किरदार बहुत अच्छे से निभाया है। विधायक मुन्नालाल पटेरिया के किरदार में विजय राज ने कमाल किया है। राजपाल यादव हमेशा की तरह अपनी अभिनय का छाप छोडऩे में कामयाब रहे हैं। ब्रिजेंद्र काला का रोल कुछ कम है, हालाँकि वे उतने में भी प्रभाव छोड़ते हैं। मगर फिर भी ऐसा लगता है कि गुलाब सेठ बने रघुबीर यादव, चंदूलाल बने रवि झंकाल तथा बिजेंद्र काला का रोल कुछ अधिक होना था। पुलिस अधीक्षक के रूप में गुरपाल सिंह ने पुलिस अधीक्षक की ठसक तथा बेचारगी को बहुत अच्छे से निभाया है। नेहा सराफ़ ने कुंती के रूप में महिमा की सहायक और ड्रायवर के रूप में अच्छा अभिनय किया। अभिनय की दृष्टि से सभी कलाकारों ने अपने-अपने रोल में जान फूँकने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है। फि़ल्म का निर्देशन भी बहुत अच्छा और कसा हुआ है। यशोवर्धन मिश्रा ने अपने पहले ही निर्देशकीय क़दम को बहुत मज़बूती के साथ रखा है।

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