9 July, Kharora : कोपर चलाओ – दुगना कमाओ – अग्रवाल

Kharora ,कोपर चलाओ - दुगना कमाओ - अग्रवाल
  1. Kharora ,कोपर चलाओ – दुगना कमाओ – अग्रवाल

  2. Kharora, रायपुर के वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध कृषक प्रेमचंद अग्रवाल जी ने धान की खेती में क्रांतिकारी तकनीक कोपर पद्धति विकसित की है

Kharora/ रायपुर के वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध कृषक प्रेमचंद अग्रवाल जी ने धान की खेती में क्रांतिकारी तकनीक कोपर पद्धति विकसित की है |

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Kharora जिसे अपनाकर वे वर्षो से दूनी फसल उत्पादित कर रहे है | उनके तकनीक पर इंदिरागांधी कृषि विश्व विद्यालय आई. सी. ए. आर. नई दिल्ली ने भी मुहर लगाई है |

प्रेमचंद अग्रवाल जी से ख़ास चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि 50 वर्ष पूर्व सन 1968 में कोलकाता से अपनी पढाई पूरी कर वे Kharora, रायपुर जिले स्थित निवास लौटे |

जहां कृषि को अपना पेशा बनाया |

Kharora शुरुआत में वर्षो तक 15 – 15 घण्टे खेत में रहकर खेती की | खेती हौबी है | पर अनउपजाऊ जमीन में महज 5 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ धन हो पता था |

Kharora बाद में कोपर पद्धति अपनाई | जो क्रांतिकारी सिद्ध हुई | उत्पाद दुगना बढ़ गया |

पीसी अग्रवाल अन्य किसानों को यह तकनीक अपनाने की सलाह देते है वे बताते है कि कोपर प्रत्येक कृषक का महत्वपूर्ण साधन हैं | इसका बहुउद्देशीय उपयोग होता हैं |

जैसे ढेला फोड़ने, जमीन को समतल करने, दत्तारी चलाने, रोपाई आदि के लिए बियासी उपरांत पानी भरकर ऊपरी कोपर चलाकर निंदाई करने में भी उपयोग होता हैं |

अग्रवाल ने बताया की 30 वर्षो के कृषि अनुभव उपरांत शोध करके कोपर पद्धति विकसित की | सन 1976 में पहली बार कोपर को प्रयोग में लाया |

तब पानी की कमी के कारण कचरा एक अनुपात सौ था |

जिसके चलते निंदाई असंभव थी | तब खेतो में पानी भरा एवं 25 किलोग्राम यूरिया डालकर कोपर चलाया |

80 एकड़ प्लाट में 20 – 20 एकड़ में 6 – 7 कोपर चलाकर कचरे को दबाया |

4 दिन में पूरा प्लाट होने के बाद प्रक्रिया फिर दोहराई |

4 दिन बाद फिर से भैंसा कोपर चलाकर कचरे को खेत की लद्दी में दबाया |

70 प्रतिशत कचरा खेत में दब गया | 30 प्रतिशत कचरे का लेयर (परत) बन गया ।

जो कटाई के बाद जमीन से एक फुट ऊँचा था | इस तरह क्रांति धान 17 नंबर की सफरी के जितना ऊँचा हो गया | धान की बाली पकने के बाद पूरी फसल खेत के अंदर सो गई |

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धान का बोझ उठता नहीं था फसल में 250 प्रतिशत वृद्धि हुई |
अग्रवाल कोपर पद्धति अपनाने निम्नांकित लाभ गिनाते हैं, फसल उत्पादित दुगना |

कोपर पद्धति प्रति वर्ष अपनाने से हरी घांस आती हैं |

प्रचुर मात्रा में घांस बनता हैं धान की टूटी जड़ो से नई कंसे आती हैं |

जो भी फंगस फफूंद आदि होते हैं, सब रगड़कर नष्ट हो जाते हैं |

रासायनिक तत्व ऊपर (जमीन) आ जाते हैं | नए कंसे में शत प्रतिशत बाली आती हैं |

और ठोस दाने भी धान की फसल की उम्र 5 – 6 दिन बढ़ जाती हैं |

जिससे अच्छे परिणाम मिलते हैं | खेत में इतना ही पानी रखे की कोपर आसानी से चल सके |

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पौधे टूटेंगे नहीं | कोपर के चलते पौधों को 100 प्रतिशत खाद मिलता हैं |

फसल पौधों में बीमारी की सम्भावना न्यूनतम हो जाती हैं | फसल स्वस्थ्य एवं दूनी हो जाती हैं | फसल लागत भी काम आती हैं |
धान के पत्ते पैने – तीर के समान होते हैं | अग्रवाल कहते हैं बैल जोड़ी खेती की जान किसान की शान |

कोपर चलाओ दूना कमाओ |

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अग्रवाल के पास हर वर्ष दर्जनों किसान खरोरा पहुँच कोपर पद्धति समझतें हैं और अपनाते भी हैं |

अग्रवाल चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ के किसान यह पद्धति अपनाकर अपनी आय दुगनी कर सकता हैं | साथ ही उत्पाद भी दुगना |

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