1 July, doctors day : सरकारी नौकरी छोड़ झोपड़ी में खोला डिस्पेंसरी…मजदूरों को बेहतर उपचार देना उद्देश्य…पढ़िये पूरी खबर

doctors day सरकारी नौकरी छोड़ झोपड़ी में खोला डिस्पेंसरी
  1. doctors day सरकारी नौकरी छोड़ झोपड़ी में खोला डिस्पेंसरी

  2. doctors day संसार में डाॅक्टर की तुलना भगवान से होती है

doctors day डौंडीलोहारा. संसार में डाॅक्टर की तुलना भगवान से होती है. भगवान शब्द एक ऐसा शब्द है

,doctors day जहां आत्मविश्वास एक नए सूर्य की किरण जीवन में ललिमा ला देती है .

आज हम आपको doctors day पर बालोद जिले के एक ऐसे डॉक्टर दंपत्ति के बारे में बताने जा रहे,

doctors day जो सरकारी नौकरी को छोड़ बीमार लोगों का इलाज कर उन्हें नया जीवन देकर उनके चेहरे पर मुस्कान ला रहे.

डॉ. शैबाल जाना दल्लीराजहरा आने से पूर्व कोलकाता

कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई करने के दौरान एक संगठन बनाया. मजदूर बस्ती में डिस्पेंसरी खोल उनका इलाज शुरू

किया.

कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद जैसे ही डॉक्टर जाना को पता चला कि दल्लीराजहरा में श्रमिक संगठन और मजदूरों ने

चंदा एकत्रित कर श्रमदान से गरीब मजदूर और किसानों के लिए

अस्पताल का निर्माण कर रहे तो वे यहां 1982 में आकर श्रमिक नेता व मजदूरों के मसीहा के नाम से विख्यात स्व. शंकर गुहा नियोगी से मिलकर अस्पताल में सेवा भाव से काम करने की इच्छा जताई.

डाॅक्टर शैबाल जाना ने 26 जनवरी 1983 को श्रमिक संगठन से मिले महज 2 हजार से एक झोपड़ी नुमा मकान में डिस्पेंसरी चालू कर गरीब मजदूरों का इलाज शुरू किया.

मजदूर साथियों की मदद से 9 लोगों का स्वास्थ्य कमेटी बनाकर ट्रेनिंग देने और पोस्टर एक्टिवेशन के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया.

दूसरे जिले से भी इलाज कराने पहुंचे हैं लोग

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डाॅक्टर शैबाल ने 1977 में अपने हक और अधिकार के लिए आंदोलन कर रहे मजदूरों की पुलिसिया गोली कांड में 12 मजदूर मारे गए.

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इन मजदूरों की याद में 3 जून 1983 को मजदूरों के श्रमदान और चंदे के पैसे से बने भवन में मजदूर संगठन से मिले 10 हजार रुपए से 10 बिस्तर अस्पताल की शुरुआत कर इलाज करना प्रारंभ किया,

जो आज श्रमिक संगठन और आम लोगों के सहयोग से विशाल दो मंजिला सर्व सुविधा युक्त डेढ़ सौ बिस्तर अस्पताल में विस्तार हो गया है. बालोद ही नहीं बल्कि दूसरे जिले से लोग यहां पहुंचकर कम खर्चे में बेहतर स्वास्थ्य सेवा का लाभ लेते हैं.

मजदूरों को बेहतर उपचार देना उद्देश्य

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डॉक्टर शैबाल जाना का कहना है कि अस्पताल प्रारंभ करने का एक ही उद्देश्य है कि महेनत कस मजदूर,

किसान और छोटे-छोटे व्यापार करने वाले लोगों को बेहतर उपचार मिल सके. डॉक्टर जाना का कहना है स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास हुआ, बड़े-बड़े अस्पताल बने,

जहां गरीब लोग अपना इलाज नहीं करा सकते इसलिए हमारा नारा है स्वास्थ्य के लिए संघर्ष करो और इसी उद्देश्य को लेकर हम चल रहे हैं.

श्रमिक संगठन के सहयोग से हुई शादी

डॉक्टर जाना के साथ एक ही कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा डॉ. अल्पना उनका भरपूर साथ दे रही. जब डॉ. जाना कोलकाता को छोड़ दल्लीराजहरा में लोगों का उपचार कर रहे थे,

तब अल्पना दल्लीराजहरा पहुंचकर स्वास्थ्य सेवाओं का हाल देखा. 1988 में डॉ. शैबाल जाना और डॉ. अल्पना जाना की शादी 12 हजार मजदूरों और श्रमिक संगठन के सहयोग से हुई.

अस्पताल में दी जा रही नर्सिंग ट्रेनिंग

मजदूरों और संगठनों से मिले प्रेम को देख अल्पना जाना ने अपने आपको रोक नहीं पाई और कोलकाता की सरकारी नौकरी को छोड़ यहीं आकर अपने पति का हाथ बटा रही.

अस्पताल में नर्सिंग ट्रेनिंग की शुरुआत कर स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर किया. डॉक्टर अल्पना का कहना है कि वह नर्सिंग छात्राओं को ट्रेनिंग देती थी छात्रा उनके साथ दूरी बनाती थी,

क्योंकि वे महंगी साड़ी पहनती थी. जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ तभी कम दर की साड़ी खरीदकर पहनना शुरू की और छात्रों के साथ उनका मधुर संबंध बन गया.

अस्पताल ले जाते बीच रास्ते में हुई थी महिला की मौत

डाॅ. अल्पना बताते हैं कि शहीद अस्पताल शुरु करने के बेहद रोचक कहानी है. 40 साल पूर्व कुसुम बाई नामक एक

महिला मजदूर व श्रीमक नेता को डिलीवरी के लिए नगर के बीएसपी अस्पताल में भर्ती किया गया था,

जहां उन्हें अच्छे से उपचार नहीं मिल पाया और स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उन्हें भिलाई के सेक्टर 9 अस्पताल रेफर किया जा रहा था, लेकिन बीच रास्ते में उनकी मौत हो गई.

इससे आहत होकर श्रमिक नेता व मजदूरों ने फैसला लिया कि क्यों न हम अपने लिए श्रमदान व चंदा एकत्रित कर स्वयं का अस्पताल बनाए,

जहां हम सब मजदूर परिवारों का इलाज के अलावा गरीब लोगों का कम खर्च में बेहतर इलाज हो सके.

तब से लेकर आज तक यहां अस्पताल लगातार संचालित है और रोज कैजुअल्टी में ढाई सौ से तीन सौ मरीज लोग इलाज कराने पहुंचते है.

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